मुद्रा के कार्य - Function of Money in Hindi

मुद्रा (Money ) वह शक्तिशाली वस्‍तु है, जो सभी प्रकार के लेन-देनों में भुगतान के माध्‍यम के रूप में सभी को स्‍वीकार्य होती है अर्थात् मुद्रा का अर्थ केवल कागज के नोट या सिक्‍के नहीं हैं, जिनका निर्गमन केंद्रीय बैंक तथा सरकार करती है, बल्कि वे सभी वस्‍तुएं इसके अन्‍तर्गत आती हैं, जो भुगतान के रूप में सामान्‍यत: स्‍वीकार की जाती है। आईये जानते हैं मुद्रा के कार्य - Function of Money in Hindi

मुद्रा के कार्य - Function of Money in Hindi

मुद्रा के कार्य - Function of Money in Hindi 

मुद्रा (Money ) के कार्यों को तीन भांगों में बांटा गया है-

प्राथमिक कार्य (Primary Functions)

प्राथमिक कार्य वे मार्ग होते हैं, जिन्‍हें मुद्रा ने आर्थिक उन्नति की प्रत्‍येक अवस्‍था सम्‍पन्‍न किया है। मुद्रा के प्राथमिक कार्यों में निम्‍न दो कार्यों को शामिल किया गया है - 
  1. विनियम का माध्‍यम- मुद्रा विनियम के माध्‍यम का कार्य करती है। विनियम से आशय एक वस्‍तु देकर दूसरी वस्‍तु प्राप्‍त करना होता है। मुद्रा के माध्‍यम से कोई भी वस्‍तु खरीदी तथा बेची जा सकती है, क्‍योंकि मुद्रा को कोई भी व्‍यक्ति या अन्‍य कोई संस्‍था लेने से इंकार नहीं कर सकती है, क्‍योंकि मुद्रा सरकार के द्वारा घोषित होती है।
  2. मूल्‍य की इकाई- मुद्रा का दूसरा मुख्‍य कार्य समाज में उत्‍पन्‍न वसतुओं एवं सेवाओं का मूल्‍य मापन करना है। जिस प्रकार भौतिक वस्‍तुओं की माप तौल, लम्‍बाई, चौड़ाई, लीटर, मीटर में की जाती है उसी प्रकार वस्‍तुओं और सेवाओं का मूल्‍य मुद्रा में मापा जाता है। मुद्रा वसतुओं और सेवाओं के मूल्‍य मापन का एक बहुत अच्‍छा यंत्र है। इसके बिना वस्‍तुओं और सेवाओं का मूल्‍य नहीं मापा जा सकता।

सहायक कार्य (Secondary Functions)

मुद्रा के सहायक कार्य निम्‍नलिखित हैं - 
  1. स्‍थगित भुगतानों का मानक- वर्तमान युग में सारा व्‍यवसाय साख पर आधारित है। साख से अभिप्राय वस्‍तुओं का उधार क्रय-विक्रय करना और उसका भुगतान भविष्‍य में प्राप्‍त करना या देना होता है। यह प्रक्रिया केवल मुद्रा के माध्‍यम से पूरी की जाती है, क्‍योंकि मुद्रा में स्थिरता का गुण होता है।
  2. मूल्‍य का संचय- मूल्‍य का संचय से आशय है कि मनुष्‍य अपनी आय का कुछ प्रतिशत अपने भावी भविष्‍य तथा किसी प्रकार की आकस्मिक घटनाओं के घटित होने से बचने के लिए बचाकर रखता है। यह सब मुद्रा के द्वारा ही संभव है। इसलिए मुद्रा वर्तमान युग में मूल्‍य संचय का साधन है।
  3. मूल्‍य का हस्‍तान्‍तरण- मुद्रा विनियम माध्‍यम का कार्य भी करती है और इसी कार्य के कारण मुद्रा मूल्‍य हस्‍तान्‍तरण का सर्वोत्‍तम साधन बन गई है।

आकस्मिक कार्य ( Casual Work)

मुद्रा के आकस्मिक कार्य निम्‍नलिखित हैं- 
  1. तरल परिसम्‍पत्तियों में सर्वाधिक तरल- मुद्रा के माध्‍यम से ही सम्‍पत्ति को तरल रूप प्रदान किया जाता है। जैसे- भवन, जमीन, मशीन, फर्नीचर आदि।
  2. साख प्रणाली का आधार- वित्‍तीय संस्‍थाओं का व्‍यापार साख के आधार पर ही होता है।
  3. सीमान्‍त उपयोगिताओं तथा उत्‍पादकताओं की समकार- मुद्रा पूंजी का सबसे बड़ा आधार है। मुद्रा के माध्‍यम से पूंजी को ऐसे साधनों में विनियोग करके हस्‍तान्‍तरित किया जा सकता है। जहां उसकी उत्‍पादकता तुलनात्‍मक रूप से अधिक हो। इससे पूंजी की उत्‍पादकता और गतिशीलता में वृद्धि होती है।
  4. राष्‍ट्रीय आय का मापना- राष्‍ट्रीय आय से आशय है किसी भी देश की वार्षिक आय से होता है कि एक वर्ष में कितना लाभ हुआ और कितनी हानि। 
  5. राष्‍ट्रीय आय का वितरण- मुद्रा के आकस्मिक कार्य में प्रथम कार्य आय का वितरण है। मुद्रा के माध्‍यम से ही सरकारी उद्योगों की आय का वितरण संभव है। 
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